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अंगे्रजी शब्द ‘कोरेल’ की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द कोरेलन से हुई है। इसका संकेत मूंगा प्रजाति के जीव के कठोर व चूनेदार ढांचे की ओर है। इसका दूसरा सम्भव स्त्र्रोत ‘कुरा-हेलोस’ है, जिसका अर्थ मत्स्य कन्या है। कुछ लोगों का माननाहै कि इसका उद्भव यहूदी शब्द ‘गोरल’ से हुआ है, जिसका तात्पर्य है वह पत्थर देवपुरूष है। यह ओरेकल के निर्माण में प्रयुक्त होता है। यह एक समुद्रीय अकशेरूकी विशाल वर्ग का भाग है, जिसमें कैल्शियम कार्बोनेट अथवा कठोर श्रंृणी ढांचा होता है, जो कोरल के नाम से जाना जाता है। मूंगे को अष्ट स्पर्शिका युक्त जीवों की बहिःपकोष्ठिक समानताव में भिन्नता के आधार पर दो वर्गों में उपविभाजित किया जाता है। इनमें प्रत्येक के आंतरिक ढांचा या षष्ट स्पर्शिकायंे होती हैं। लाल मूंगा, अष्ट स्पर्शिकीय जीवों के उपवर्ग में से है। मंूगे से पारगम्य होने वाला वायवीय रंग पीला है। लाला मूंगे को धारण करने से बाधायें दूर होती हैं। इससे दुर्घटनाओं, कलह व झगडों का निवारण होता है। इससे जायदाद में वृद्धि होती है। तथा व्यक्ति कर्जमुक्त हो जाता है। इससे समृद्धि का विकास होता है, कुज दोष का निवारण होता है, व वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है। यह मंगल के कुप्रभाव से होने वाली बीमारियां, जैसे पीलिया एवं यकृत संबंधी दोषों से बचाता है। यह फोडों को ठीक करने के अलावा, रक्त को स्वच्छ बनाकर गर्भधारण व प्रसव में मदद करता है। यह सृजनात्मकता, उत्साह, अनुराग, प्रेम, ज्ञान, व आशा में वृद्धि करता है।
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